यार ऐसा है रूठता ही नहीं
यार ऐसा है रूठता ही नहीं
साथ ऐसा है छूटता ही नहीं
ऐ बुलन्दी तुझे सहूँ कैसे
इक नशा है कि टूटता ही नहीं
हुस्न की बात होती है हरदम
इश्क़ आशिक़ को पूछता ही नहीं
दिल का आलम अजीब आलम है
ख़्वाब जैसा है टूटता ही नहीं
तेरी ज़ुल्फ़ें हैं या क़यामत है
जो फँसा इनमें छूटता ही नहीं