यादों के सायों को लेकर
यादों के सायों को लेकर
फिरने लगी हूं दिन भर
अपने साथ साथ ताकि
रात को चैन की नींद सो पाऊं
थक गई तो
अगली सुबह यादों का बोझ उठा नहीं
पाऊंगी और
उससे अगली सुबह तो फिर
यादों का बोझ तो क्या मैं
खुद भी अपने बिस्तर से
उठ नहीं पाऊंगी
एक याद बनकर ही कहीं
अपने तकिये के नीचे
कहीं दब कर मर जाऊंगी।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001