यादों के शहर में
आज मेरे यादों की शहर में बारिश हुई होगी
घर के कोने की ताल तलैया भरी होगी
बच्चों की टोली नाव बनाने में लगी होगी
आज मेरे शहर का तोता बूढ़ा हो गया होगा
न जाने अब वह कहां होगा
जो अपनी चोच से चिट्ठी उठाता
मेरे भाग्य का सारा चिट्ठा बताता
आज यादों के शहर में
वह खाकी वर्दी वाला डाकिया आता होगा
कभी तार चिट्ठी मनीआर्डर लाता होगा
आज भी वहां जमवाड़ा लग जाता होगा
कितने वृद्धों के चेहरों पर मुस्कुराहट लाता होगा
आज मेरे यादों के शहर में
जब हम गिल्ली डंडा खेलते थे
जब मोच आ जाती थी कभी हड्डी टूट जाती थी
तो वह बिना पढ़ा परमेश्वर आता था
तेल लगाकर मोच और हड्डी बिढाता था
सब कुछ मिनटों में ठीक हो जाता था
आज इस महा महानगर में
सब कुछ खोया सा नजर आता है
किसी मे वो प्यार नजर ना आता है
सारा जीवन की सुई की नोक पर
मशीन सा हो जाता है
मन करता है यादों के शहर में जाऊं
और सब कुछ ताजा कर आऊं
मौलिक एवं स्वरचित
मधु शाह