यादों की एक नई सहर. . . . .
यादों की इक नई सहर …..
न, न
अब मैं तुम्हारी बातों में न आऊँगी
तुम्हारी जिद के आगे न झुक पाऊँगी
तुम तो निर्मोही हो
मेरी पीर क्या समझ पाओगे
बस जग के सामने
जुदाई के सारे दर्द कह जाओगे
उसकी बेवफाई का दर्द
जब जब मैं भूलने का प्रयत्न करूंगी
तुम चुपके से
उसे फिर हरा कर जाओगे
मैं ये भी जानती हूँ
कि तुम पर
मेरी अनुनय- विनय का
कोई असर न होगा
तुम हठी हो
मैं कितनी भी
अपनी पलके बंद करूं
तुम किसी कोने से
बूँद बन के
चुपके से मेरे गालों पर
दर्द की इक
पगडंडी बनाते हुए
निशान छोड़ते हुए
मेरी हथेली पर गिर के
हौले से मुस्कुराओगे
तुम तो आंसू हो
कुछ देर में
सूख कर फना हो जाओगे
मगर
मुझे फिर से
यादों की इक नई सहर दे जाओगे ,
यादों की इक नई सहर दे जाओगे…..
सुशील सरना/1-3-24