यात्राएँ
घुमक्कड़ मन करता है कितनी यात्रायें,
हर यात्रा में रह ही जाता है कुछ ना कुछ अधूरा,
जिसे पूरा करने की एक टीस रह जाती है मन में,
हर अगली यात्रा अप्रायोजित नहीं होती,
हर पिछली यात्रा का ख़ालीपन धकेलता है हमेशा
पूरे होने की ओर/
जैसे मुट्ठी में पानी भरने भर लेने पर
सिर्फ़ पानी का अहसास रह जाता है,
पानी अंतत: रिस ही जाता है।