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15 Feb 2023 · 2 min read

#यह रंग कच्चा लगता है

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★ #यह रंग कच्चा लगता है ★

ज्वार नहीं सेवार नहीं
जो जल में पनपता बहता है
मैं वो दीपक सूरज के पलटने तक
जो तूफानों में जलता है

ज्वार नहीं सेवार नहीं . . .

आज ही के दिन बदला था
सत्ताधीशों की चमड़ी का रंग
सुर स्वर लौट रहे वही
यह रंग कच्चा-कच्चा लगता है

ज्वार नहीं सेवार नहीं . . .

माँ भारती की बांहें कटने पर
सजता-धजता हर्षित
कपूत धूर्त पाखंडी अपराधी
निर्बुद्धि बच्चा लगता है

ज्वार नहीं सेवार नहीं . . .

वो घर वो गलियां और नगर
सब छूट गए मुझसे
मदारी को लेकिन पान में
चूना कम बहुतेरा कत्था लगता है

ज्वार नहीं सेवार नहीं . . .

स्मृतिपाखी लौट-लौट जाता
उसी वन उपवन बगिया फुलवारी में
धर्म बचा लिया किंतु
दिल वहीं कहीं रखा लगता है

ज्वार नहीं सेवार नहीं . . .

तिथि दिनांक मुहूर्त पहर
पल छिन घड़ियां सब छूटे
आधी रात तिथिपत्रकसंशोधन
पागलपन-सा लगता है

ज्वार नहीं सेवार नहीं . . .

अंधा कानून असहाय भी हो कभी
कभी-कभी अच्छा लगता है
रंगेसियारों को पालतू कटखना
श्वान ही सच्चा लगता है

ज्वार नहीं सेवार नहीं . . .

नींद का नयनों से अलगाव
करवटें बदलना रात भर
पिछले जनमों की भूलचूक
इस जनम में धक्का लगता है

ज्वार नहीं सेवार नहीं . . .

इक प्रश्न कन्नी काट गया
उत्तर की तर्कहीनता भांपकर
सपनों के माथे मढ़ना मूढ़ता
बहुत-बहुत भद्दा लगता है

ज्वार नहीं सेवार नहीं . . .

कहें तो कहें पीर किससे
अपने अपनों के बिछुड़ने की
ऊंचे महलों को तो जैसे
शिखर कंगूरा ढहता लगता है

ज्वार नहीं सेवार नहीं . . .

सत्यविजय असत्यपराजित
शस्त्रपूजन मनाएं दशहरा
कुरेदन रिसते घावों का लेकिन
गऊहत्या-सा लगता है

ज्वार नहीं सेवार नहीं . . .

वर्ष प्रतिवर्ष भारतवर्ष
देखे है स्वप्न सुहावने
बदलते मुखड़े देख-देख
लालकोट भौचक्का लगता है

ज्वार नहीं सेवार नहीं . . .

कुछ दिन से इक मतवाला
छेड़े है इक राग नया
आँखें पीती रहतीं उसको
मनभँवरे को ठगता है

ज्वार नहीं सेवार नहीं . . .

हिंदीजनों रे ब्रह्ममुहूर्त वेला
हरि भजो रे हरि भजो
सुघड़ प्राची के मस्तक
दिव्य टीका भगवा सजता है

ज्वार नहीं सेवार नहीं . . . !

* १५-८-२०२० *

#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२

Language: Hindi
216 Views
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