यह मौसम की मार है या
सर्द हवायें कर देती
खामोश
मेरे लबों को
बेरुखा कर देती मेरे तन को
बेजान कर देती मेरे बालों को
कोहरे की चादर से ढक देती
मेरे मन के द्वार को
आज मैं नहीं
आप सब अनुमान लगायें
गर कुछ वास्ता है मुझसे
यह मौसम की मार है या
कुछ और
क्या इन बदलते मौसमों की तरह
मेरे चेहरे के रंग भी
बदलने लगे हैं
कभी सिमटते
कभी सिकुड़ते तो
कभी फैलने लगे हैं
कहीं कहीं यह अन्तर्मन के मौसम भी
बदलने लगे हैं
हम न चाहते हुए भी
दुनिया को समझने लगे हैं
कुछ कुछ बदलने लगे हैं।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001