यह पगला
मैं चाहूं या
न चाहूं
चांद अंधेरी रातों को
अक्सर रोशन कर ही
जाता है
यह नहीं जानता कि
कभी कभी अंधेरा इतना
मन को भा रहा होता है कि
एक कतरा रोशनी का
उसके पास होना उसे नहीं
भाता पर
यह पगला तो अपना
फर्ज निभाता है
न जाने कौन से जन्मों का
कर्ज इसके सिर चढ़ा है
उसे उतारता है
मोहब्बत करना जाने
यह कब सीखेगा
किसी की आंखों में
रोशनी भरकर उसे
जागते से नहीं सुलाते
उसके ख्वाबों को नहीं
जलाते
उन्हें अपनी रोशनी से नहीं
बुझाते
न जाने यह पगला
कब सीखेगा
फूल पर रात्रि में मंडराने
वाला यह पगला
एक भंवरा न जाने कब
बनेगा।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001