यह तो पानी का वह बुलबुला है जो
मैं समझती थी कि
यह शीशा है
यह तो पत्थर भी न
निकला
यह तो पानी का वह बुलबुला है
जो एक शोले की तरह खिलखिलाकर
हंसता ही रहता है
आग की लपटों की तरह
हर किसी पर लपकता है
एक फूल की तरह मुर्झाता नहीं
उसपर तैर रही एक ओस की बूंद की तरह
पानी में शर्म से डूबकर कहीं मर जाता
नहीं।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001