यही है दुनिया
कविता – – -( वर्ण पिरामिड)
रे
भोले
मनवा
दुनिया की
चालबाजियां
कब समझेगा
ओ मूरख नादान।
है
सब
भरम
दुनिया में
ना ही कुछ भी
सांचा है जग में
झूठ पैर पसारे।
ओ
प्राणी
ईश्वर
से तू डर
इक दिन तो
तुझे जाना ही है
शरण में उसी की।
—-रंजना माथुर दिनांक 20/08/2017
(मेरी स्व रचित व मौलिक रचना)
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