यही मिलता सिला हमको
यही मिलता सिला हमको
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बता दो बात जरा हम को,
बिताई रात खफा हम को|
मिले जब भी हुए भटके,
दिखाई राह सदा हम को|
कहूं कैफे हुई मुश्किल,
मिली कोई दफा हम को|
गिला – शिकवा नहीं कोई,
निभाई कब वफा हम क़ो|
हुई क्या भूल मनसीरत,
यही मिलता सिला हमको|
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सुखविन्द्र सिंह मशसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)