यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते
4. यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते
मॉ भी तुम हो बेटी भी तुम
पत्नी बहन सभी तुम हो ,
फूलों में तुम कमल सरीखी
मौसम में फागुन तुम हो ।
अग्नि से विकराल ज्वाल तुम
जल से भी शीतल तुम हो,
उच्च शिखर आकाश तुम्ही हो
निम्न शिखर भूतल तुम हो ।।
कान्हा संग बाँसुरी तुम्ही हो
और राम संग तीर कमान ,
भजन तुम्ही हो मंदिर में और
मस्जिद में हो तुम्ही अजान |
तुम्ही सृष्टि की निर्मात्री हो
और तुम्ही हो पालनहार,
सावित्री बन देती जीवन
दुर्गा बन करती संहार ।।
ईश्वर की सुन्दरतम रचना
और सृष्टि का हो उपहार ,
मन्द मलय का तन को छूना
ऐसा है तेरा व्यवहार ।
पलक उठे तो फूल खिल उठें
पलक गिरे तो मुरझाए ,
इन्द्रधनुष मुस्कान तुम्हारी
अलकें लगती चंदनहार ।।
तुम्हे बनाकर विधना ने भी
जग पर ये उपकार किया ,
सुन्दरता की परिभाषा को
गढ़ने का आधार दिया ।
किन्तु बनाकर तुझे विधाता
स्वयं पड़े हैं इस भ्रम में ,
उसने रखा रूप तेरा
या तूने उसका धार लिया ।।
ईश्वर की इस अप्रतिम रचना का
हम सब सम्मान करें,
पूजित हो जो देवगणों से
उसका ना अपमान करें ।
नारी तो जननी है जग की
कर्ता – भर्ता – उपकर्ता ,
आओ उसका नमन करें
पूजन अर्चन यशगान करें ।।
प्रकाश चंद्र, लखनऊ
IRPS (Retd)