मोह और रिश्तों का संतुलन
मोह और रिश्तों का संतुलन
शादी की यह पवित्र व्यवस्था,जहां रिश्तों का होता है वास्ता।
पर जब मोह बन जाए बंधन भारी,तो रिश्तों में आती है दूरी सारी।
वो लड़का, जो अपने मां-बाप से दूर हुआ,अपना कर्तव्य, अपना धर्म जब भूल गया।
वो लड़की, जो अपने मोह में बंधी रही,मायके की चौखट से आगे ना बढ़ सकी।
उनका भविष्य फिर कैसा होगा,जहां संबंधों का कोई आधार न होगा।
उनके बच्चे भी वही राह चलेंगे,ना मां-बाप से प्रेम, ना परिवार के संग जुड़ेंगे।
मोह का बंधन रिश्ते तोड़ देता है,सम्मान का दीपक बुझा देता है।
प्रेम अगर हो सही राह का दूत,तो रिश्तों में स्नेह का रस भरता है पूत।
पर मोह बन जाए अगर अज्ञान का रूप,तो यह रिश्तों को बना देता है कुरूप।
ना सम्मान रहता, ना धर्म का भाव,हर रिश्ता बन जाता एक सूखा घाव।
मोह से ऊपर उठो, समझो ये बात,मां-बाप से रिश्ता है जीवन का साथ।
पति-पत्नी के बीच भी हो संतुलन,तभी परिवार में हो सच्चा अनुबंधन।
जो अपने मां-बाप को भुला बैठे,उनके बच्चे भी दूरियां ही रचते।
जो अपने मोह को ना त्याग सके,उनके घरों में सुकून कभी ना टिके।
रिश्ते सम्मान से ही चलते हैं,मोह के जाल से दूर पलते हैं।
शादी संस्था का यही है संदेश,संतुलन से बनता है जीवन विशेष।
मोह का त्याग कर प्रेम को अपनाओ,सम्मान, कर्तव्य से रिश्ते सजाओ।
मां-बाप का आशीर्वाद सदा साथ रहे,हर परिवार में प्रेम का वास रहे