मोहब्बत का कर्ज कुछ यूं अदा कीजिए
मोहब्बत का कर्ज कुछ यूं अदा किजिए,
अपने महबूब के हक में दुआ कीजिए।
वो बेवफा हैं तो क्या हुआ,आखिर आप
तो अपने हिस्से की वफा कीजिए।
जख्म मिले हो अगर प्यार में,
तो हंसकर उन्हें भुला दीजिए।
शिकवा न शिकायत कोई उनसे,
बस चुप रहकर अपनी बात बता दीजिए।
अगर वो रूठ जाएं आपसे तो न सोचो
कि कैसे मनाएं उनको,
हाले दिल कोरे कागज पर बयां कीजिए।
हमने तो कभी नही भुलाया उनको,
उनकी यादों से न हमको जुदा कीजिए।
माना कि हकीकत में मिलना नहीं है मुमकिन अपना,
कम से कम ख्वाबों में ही मिला कीजिए।