Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
17 Jan 2022 · 5 min read

मोहन हैं जहाँ प्रेम है वहाँ……….

धर्म ग्रंथो में ये वर्णित है कि पृथ्वी पर जब जब पाप कि उत्पति हुई है तब तब उसके उन्मूलन के लिए अदृश्य शक्तियों ने धरा पर अवतार लिया है।श्री कृष्ण भी अवतारी पुरुष थे।धार्मिक ग्रंथो में इस बात का विस्तृत उल्लेख मिलता है कि श्री कृष्ण भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार स्वरुप थे।उन्होंने पृथ्वी पर बढ़ रहे अर्धम व पाप के विनाश के लिए श्री कृष्ण के रुप में अवतार लिया था। भादों माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन देवकी की आठवीं संतान के रुप में जन्में श्री कृष्ण का लालन पालन गोकुल गांव में नंद यशोदा के घर हुआ। यद्यपि श्री कृष्ण कोई साधारण पुरुष नहीं थे।ईश्वर स्वरुप होकर व हर प्रकार से सक्षम होकर भी उन्होंने हमेशा स्वंय को विन्रम ही बनाए रखा।उन्होंने आमजन को जहाँ धर्म का पाठ पढ़ाया वहीं जनमानस को कर्म का महत्व समझाकर उनसे निरंतर कर्मशील बने रहने का आवाह्न किया।उन जैसा कर्मयोगी न तो उनसे पहले कभी हुआ और न ही उनके बाद।गीता में श्री कृष्ण ने कर्म को ही प्रमुख बताया है।उन्होनें गीता में कहा भी है कि-
कर्मण्येवाधिकारस्ते :
मा फलेषु कदाचन:॥
अर्थात कर्म करना तो तुम्हारा अधिकार है लेकिन उसके फल पर कभी नहीं।कर्म को फल की इच्छा से कभी मत करो बल्कि उसे फल की चिन्ता से रहित होकर करो।तथा तुम्हारी कर्म न करने में भी कोई आसक्ति न हो।
कृष्ण के रुप में वो अपना निश्छल प्रेम लुटाते रहे।कभी यमुना के तट पर ग्वालों के साथ ठिठोलियां करते गोपाल के रुप में तो कभी गोपियों के बीच बांसुरी बजाते श्याम के रुप में।कभी वो माखन चुराते बाल गोपाल के रुप में दिखे तो कभी जनप्रिय द्वारकाधीश के रुप में।श्री कृष्ण का जन्म अधर्म व पाप के विनाश के लिए ही हुआ था।गीता में उन्होने कहा भी है कि-
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे॥
अर्थात साधू षुरुषों का उध्दार करने के लिए पाप कर्म करने वालो का विनाश करने के लिए और पुन: धर्म की स्थापना के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ।
अपने सभी रुपों में श्री कृष्ण ने संपूर्ण मानवता को प्रेम का ही संदेश दिया है।इनके सभी रुपों में मोहकता है।राधा के लिए इनकी धमनियों में प्रेम प्रवाहित होता है तो मीरा के लिए भी इनके नेत्रों से प्रेम की अनगिनत धाराएँ प्रस्फूटित होती हैं।राधा- कृष्ण के बारे में जितना कहो-सुनों या फिर पढ़ो उतना ही लगता है कि कुछ और है जो छूट गया है।एक अधूरापन सा लगता है।जब भी राधा- कृष्ण के बारे में किसी विषय पर बात करतें हैं तो कब उनके जीवन का दूसरा अध्याय शुरु हो जाता है कुछ पता ही नहीं चलता।उनके प्रेम को जितना अभिव्यक्त करो उतना ही लगता है कि बहुत कुछ रह गया है।बहुत कुछ छूट गया है।क्योंकि प्रेम में कभी संपूर्णता आ ही नहीं सकती। कृष्ण दैहिक प्रेमी नहीं थे।इसलिए राधा- कृष्ण का प्रेम भी कामनाओं से मुक्त है।उनका अस्तित्व आज भी प्रेम से ओत-प्रोत है।ये उनके प्रेम की सार्थकता ही तो है जो उनका व्यक्तित्व आज भी इतना आभामय प्रतीत होता है। राधा- कृष्ण का प्रेम अनूठा है कामनाओं से परे।जिसमें वासनाओं के लिए कुछ भी शेष नहीं कुछ भी रिक्त नहीं।कब कृष्ण-राधा हो जाते हैं और कब राधा- कृष्ण कुछ पता ही नहीं चलता।दोनों शारीरिक तौर पर अलग-अलग हैं किंतु प्रेम को दोनों ने ही आत्मसात किया है।ये प्रेम ही तो है जो शारीरिक तौर पर अलग-अलग होने के बावजूद भी दोनों को एक कर देता है तन से भी और मन से भी।
मीरा के प्रभू गिरिधर नागर:-
ये सर्वविदित है कि भक्ति का मार्ग अत्यंत जटिल और बाधाओं से लबरेज होता है।हमेशा अपने इष्टदेव को स्मरण करने वाले लोग भी समुन्द्र की तरह उसकी थाह नहीं जान पाते।परंतु जो निश्चय के पक्के होते हैं और जिनका अपने इष्ट पर दृढ़ विश्वास होता है उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं।इतिहास ऐसे सैकड़ो उदाहरणों से अटा पड़ा है जिन्होंनें भक्ति मार्ग के दुर्गम पथों को सहजता से पार करके ईश्वर को प्राप्त किया।राधा की तरह मीरा भी मोहन की अनन्य साधिका थी।श्री कृष्ण की कथाओं में मीरा का जिक्र न आए ऐसा संभव ही नहीं।क्षत्रिय कुल की मान-मर्यादाओं को ताक पर रखकर श्री कृष्ण के ध्यान में मगन रहने वाली मीरा ने सारे राज सुख त्याग कर मोहन से ऐसी प्रीत लगाई कि वह कब रानी से कृष्ण दीवानी हो गई उसे पता ही नहीं चला।मीरा ने मूरत स्वरुप गोपाल को अपना पति स्वीकार करके उन पर अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया।कहते हैं कि भगवान भक्त के बस में होते हैं।भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा भी है कि –
‘ये यथा मां प्रपघन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
मम वत्र्मानुवर्तन्ते मनुष्या:पार्थ सर्वश:॥
अर्थात-मेरे भक्त मुझे जिस प्रकार भजते हैं मैंं भी उनको उसी प्रकार भजता हूँ।क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं।मीरा का प्रेम भी कृष्ण की तरह दैहिक नहीं था।मीरा का प्रेम इतना निश्छल था कि उसके इकतारे की स्वर लहरियों में साक्षात ईश्वर के वास का आभास होता था।मीरा की ईश भक्ति से खार खाए लोगों ने जब उसे जहर देकर मारने की साजिस रची तो वह जहर भी उसके लिए अमृत का प्याला बन गया।जब उसके लिए कांटों की सेज बिछाई गई तो वह कांटों की सेज भी ईश कृपा से फूलों में तब्दील हो गई।इन सब से अनजान मीरा हमेशा श्री कृष्ण की भक्ति में ही रमी रही।इसी वजह से श्री कृष्ण की अनुकंपा हमेशा उस पर बनी रही।
राजा होकर भी नहीं भूले अपने बाल सखा को:-
श्री कृष्ण की उदारता के संबध मे अनेक लोक गाथाएँ प्रचलित हैं।परंतु सुदामा का प्रसंग सबसे निराला है सबसे अलग है।राजा बनने के बाद भी श्री कृष्ण अपने गरीब बाल सखा सुदामा को नहीं भूले ये उनकी उदारता का ही परिचायक है।सुदामा अपनी पत्नी के बार-बार आग्रह करने पर श्री कृष्ण जी के पास द्वारका नगरी पहुंच गए।द्वारका पहुंचते ही श्री कृष्ण जी ने सुदामा का आत्मीयता से अतिथि सत्कार किया।किंतु सुदामा फिर भी संकोचवश अपने बाल सखा श्री कृष्ण से आर्थिक सहायता न मांग सके।मगर अंर्तयामी और घट-घट की जानने वाले श्री कृष्ण जी से भला क्या छिपा था।सुदामा के लाख छिपाने के बावजूद भी श्री कृष्ण सुदामा के आगमन का प्रयोजन जानते थे।मगर सब कुछ जानने के बावजूद भी श्री कृष्ण अनभिज्ञ बने रहे।उनके अतिथि सत्कार में सुदामा भी सब कुछ भूल गए।स्वंय एक राजा होकर भी श्री कृष्ण ने सुदामा के चरण इस तरह से धोए जैसे कोई सेवक अपने स्वामी के धोता है।ऐसे अतिथि सत्कार से गदगद हो सुदामा अपने घर-परिवार को भूला कर कई दिनो तक अपने मित्र के पास द्वारका नगरी में रुके रहे। श्री कृष्ण ने सुदामा के साथ ठीक वैसा ही व्यवहार किया जैसा एक राजा अपने समकक्ष के साथ करता है।
उन्होंनें बिना कुछ मांगे ही सुदामा को वो सब कुछ दे दिया जिसकी कामना उन्हें द्वारका तक खींच लाई थी।सुदामा को भीक्षा में मिले चावल भी श्री कृष्ण ने ऐसे खाए जैसे छप्पन भोग उनके सामने रखें हों।
सुदामा के दो मुठी चावल खाकर ही श्री कृष्ण जी ने उन्हें दो लोक का स्वामी बना दिया और सुदामा को इसका आभास तक न होने दिया।ये अपने मित्र के प्रति उनकी उदारता ही तो थी।

-नसीब सभ्रवाल “अक्की”
पानीपत ,हरियाणा।
मो.-9716000302

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 1 Comment · 1244 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
जो मनुष्य सिर्फ अपने लिए जीता है,
जो मनुष्य सिर्फ अपने लिए जीता है,
नेताम आर सी
2385.पूर्णिका
2385.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
🍀🌺🍀🌺🍀🌺🍀🌺🍀🌺🍀🍀🌺🍀🌺🍀
🍀🌺🍀🌺🍀🌺🍀🌺🍀🌺🍀🍀🌺🍀🌺🍀
subhash Rahat Barelvi
तिरंगे के तीन रंग , हैं हमारी शान
तिरंगे के तीन रंग , हैं हमारी शान
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
कसौटियों पर कसा गया व्यक्तित्व संपूर्ण होता है।
कसौटियों पर कसा गया व्यक्तित्व संपूर्ण होता है।
Neelam Sharma
वाह ! मेरा देश किधर जा रहा है ।
वाह ! मेरा देश किधर जा रहा है ।
कृष्ण मलिक अम्बाला
सिर्फ उम्र गुजर जाने को
सिर्फ उम्र गुजर जाने को
Ragini Kumari
काव्य_दोष_(जिनको_दोहा_छंद_में_प्रमुखता_से_दूर_रखने_ का_ प्रयास_करना_चाहिए)*
काव्य_दोष_(जिनको_दोहा_छंद_में_प्रमुखता_से_दूर_रखने_ का_ प्रयास_करना_चाहिए)*
Subhash Singhai
चांद पर भारत । शीर्ष शिखर पर वैज्ञानिक, गौरवान्वित हर सीना ।
चांद पर भारत । शीर्ष शिखर पर वैज्ञानिक, गौरवान्वित हर सीना ।
Roshani jaiswal
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
आकर्षण मृत्यु का
आकर्षण मृत्यु का
Shaily
ध्यान सारा लगा था सफर की तरफ़
ध्यान सारा लगा था सफर की तरफ़
अरशद रसूल बदायूंनी
हिंदू कट्टरवादिता भारतीय सभ्यता पर इस्लाम का प्रभाव है
हिंदू कट्टरवादिता भारतीय सभ्यता पर इस्लाम का प्रभाव है
Utkarsh Dubey “Kokil”
आसा.....नहीं जीना गमों के साथ अकेले में
आसा.....नहीं जीना गमों के साथ अकेले में
Deepak Baweja
(24) कुछ मुक्तक/ मुक्त पद
(24) कुछ मुक्तक/ मुक्त पद
Kishore Nigam
मेरी जान बस रही तेरे गाल के तिल में
मेरी जान बस रही तेरे गाल के तिल में
Devesh Bharadwaj
खो गया सपने में कोई,
खो गया सपने में कोई,
Mohan Pandey
जाने किस कातिल की नज़र में हूँ
जाने किस कातिल की नज़र में हूँ
Ravi Ghayal
गोलियों की चल रही बौछार देखो।
गोलियों की चल रही बौछार देखो।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
गणपति स्तुति
गणपति स्तुति
Dr Archana Gupta
■नाम परिवर्तन■
■नाम परिवर्तन■
*Author प्रणय प्रभात*
ऐसा बदला है मुकद्दर ए कर्बला की ज़मी तेरा
ऐसा बदला है मुकद्दर ए कर्बला की ज़मी तेरा
shabina. Naaz
सपना
सपना
Dr. Pradeep Kumar Sharma
*कभी हो जीत जाती है,कभी हो हार जाती है (मुक्तक)*
*कभी हो जीत जाती है,कभी हो हार जाती है (मुक्तक)*
Ravi Prakash
“पसरल अछि अकर्मण्यता”
“पसरल अछि अकर्मण्यता”
DrLakshman Jha Parimal
हमें भी जिंदगी में रंग भरने का जुनून था
हमें भी जिंदगी में रंग भरने का जुनून था
VINOD CHAUHAN
"झूठ और सच" हिन्दी ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
थोथा चना
थोथा चना
Dr MusafiR BaithA
माँ आजा ना - आजा ना आंगन मेरी
माँ आजा ना - आजा ना आंगन मेरी
Basant Bhagawan Roy
तुम हासिल ही हो जाओ
तुम हासिल ही हो जाओ
हिमांशु Kulshrestha
Loading...