मोनेटाइजेशन
खाते तो सब हैं,
खायकी क्या होती है,
ये भूख नहीं
जमीर तय करता है,
जो मुनाफे दे रहे है
उन्हें पहले चुना गया,
ये हाल उन सेवको का है,
जिनके कथन है,
न खाऊंगा, न ही खाने दूंगा.
लो दुगुने भाव में,
खरीददार बनो
अभाव कोई नहीं,
पहले डी-मोनेटाइजेशन
और अब आ गया है
मोनेटाइजेशन