मोक्ष….मेरी नज़र में
मोक्ष प्राप्ति के लिए किसी ख़ास शहर या मुक्ति भवन की दरकार क्यों ? मृत्यु के बाद की दुनिया किसने देखी है ? क्या सबूत है कि मंदिर में ज्यादा चढ़ावा चढ़ाने से या बनारस प्राण त्यागने से या मुक्ति भवन में आखिरी साँस छोड़ने या लेने से मोक्ष प्राप्त होगा ? जिस बात का कोई सबूत नही उसको ही जीवन का सच मानना कहाँ की समझदारी है ? एक ऐसी अंधेरी गुफा में भागना जिसका कोई अंत नही… हमारा जीवन जो सामने रौशनी लेकर खड़ा है जिसको हम देख सकते हैं उसी को अनदेखा कर रहे हैं…. इसी जीवन में ऐसा करें कि जीते जी अपना मोक्ष अपनी आँखों के सामने देख सकें और सही मायने में मोक्ष का आंनद ले सकें, क्यों दूसरों का जीवन नर्क बना कर मृत्यु के बाद मोक्ष की कामना करना ? जीवन से ज्यादा मृत्यु के बाद की चिंता परेशानी ? अरे ! कर्म सुधारो…अपनों को खुश रखो और खुद भी खुश रहो यही सच्चा मोक्ष है…. जिस मोक्ष के पीछे सदियों से भाग रहे हैं वो सिर्फ़ मृगतृष्णा है कुछ मिलने वाला नही..। खुदको धोखे में रखना है मुझे इन सब बातों की ज्यादा समझ नही लेकिन उम्र बढ़ने के साथ – साथ अपने आस – पास के लोगों को कर्म से ज्यादा मोक्ष की कामना में वर्तमान बर्बाद करते देख कर हास्यास्पद लगता है ।
मोक्ष प्राप्ति के लिए मृत्यु का इंतज़ार करने की ज़रूरत नही वो तो शाश्वत है आनी ही है रोकने से रूकने वाली नही…. मोक्ष को जीते जी पाने की इक्षा होनी चाहिए… सारा सार कबीर की इन पंक्तियों में है…” कस्तुरी कुंडल बसे मृग ढूँढत वन माही ” ।
स्वरचितएवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 07 – 07 – 2018 )