*मै और प्रीतम नदी के किनारे*
मै और प्रीतम नदी के किनारे
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मैं और प्रीतम नदी के किनारे,
दूर खड़े एक दूसरे को निहारें।
रात घनेरी है हमें नींद न आये,
अंबर में देखें हम चांद-सितारे।
तन-मन मे बसी है सूरत प्यारी,
तस्वीर तुम्हारी दिल में उतारें।
उम्मीदें हैँ जिंदा हिम्मत न हारी,
बिगड़े हैँ भाग्य हम कैसे संवारे।
विरही मन मे अग्न बन जलाएँ,
फल फूलों से भरी खूब बहारें।
काटे न कटते दिन और रातें,
जिंदा है मधुर यादों के सहारे।
देखूँ उसे तो देखता ही जाऊँ,
आँखों के तारे महबूब दुलारे।
कुसुमित तनु तन भी मुरझाए,
प्रीतम प्यारा दर पर न पधारे।
पीर जुदाई तड़फाए मनसीरत,
व्यथित मन कोइ भी न विचारे।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)