मै (अहम) का ‘मै’ (परब्रह्म्) से साक्षात्कार
मै (अहम) का ‘मै’ (परब्रह्म्) से साक्षात्कार
मै मै’ हूँ
मै तुझ मे हूँ मै सब मे हूँ
तू बस मै है
तू गुरुर है विश्वास नहीं ।
मै ‘मै’ हूँ
मै सत्य हूँ मै ज्ञान का भंडार हूँ
तू बस मै है
अज्ञान है निरर्थ है अर्थ नहीं ।
मै ‘मै’ हूँ
समंदर सा ठहरा भी झरने सा बहता भी
तू बस मै है
अशांत है खारा नीर है मीठा जल नहीं ।
मै ‘मै’ हूँ
मै जीवन की किताब हूं
तू बस मै हैं
तू शब्द है अहसास नही ।
मै ‘मै’ हूँ
मै स्वप्न की उड़ान् हूँ
तु बस मै है।
तु अचेत है चैतन्य नहीं ।
मै ‘मै’ हूं
मै प्रेम ज्ञान हूँ
तू बस मै है
तू द्वेष है अवगुण है गुण नहीं ।
मै ‘मै’ हूँ
मै आज हूँ कल भी
तू बस मै है
तू भ्रम है परब्रह्म नहीं ।
-रुपाली भारद्वाज