मैं हिन्दी हूँ । (हिन्दी दिवस पर)
मैं हिन्दी हूँ,
भारत की राजभाषा ।
सात दशक से खड़ी,
लेकर मन में एक अभिलाषा।
राष्ट्रभाषा का सपना,
पूरा होगा एक दिन ।
स्वतंत्रता की प्राप्ति,
पूरी नहीं मातृभाषा बिन ।
विदेशी शासन काल में,
तिरस्कार हुआ था भारी ।
पर अपने ही शासक अब,
फिरभी क्या है लाचारी ।
स्वाधीनता महा समर मे,
मैने भी बलिदान दिया है ।
प्रॉतवाद की तोड़ी सीमा,
पूरे भारत को साथ किया है ।
नेताजी,टैगोर,शास्त्री हो,
चाहे हो गॉधी,जवाहर लाल ।
राष्ट्र भाषा हिन्दी ही हो,
ऐसा था सबका ख्याल ।
पर कुत्सिक मानसिकता वालो ने,
ग्यान-उन्नति में बाधक पाया ।
अपने स्वार्थ सिद्ध करने,
संविधान अंग्रेजी में लिखवाया।
स्वदेश और स्वभाषा का,
जिनके मन मे स्वाभिमान नहीं ।
कहने भर को अपने है वे,
हिन्दुस्तानी होने का अधिकार नही ।
टूटी उम्मीदो को ढ़ॉढ़स देने,
अटल जी ,गुणगान किया ।
राष्ट्रसंघ की भरी सभा मे,
हिन्दी का जय जय कार किया ।
देखों, उन देशो को भी,
आजाद तुम्हारे साथ हुये।
अपनी अपनी मातृभाषा को,
अपनाकर प्रथम स्थान दिये।
क्या?पिछड गये वो आज,
अपने ग्यान और विग्यान मे ।
अरे!उन्हें सम्मान मिला है,
विकसितता के परिणाम में ।
जब भारत का सेवक ही बोले,
भाषा कोई विदेशी ।
झलक पड़ें अॉखों से अॉसू,
लगता ज़्यो हो परदेशी ।
बदलो, अपनी सोच,
मानसिक दासता छोडो़ ।
मातृभाषा को लो साथ,
बढ़ो, दुनिया को पीछे छोडो ।
राजेश कौरव सुमित्र