मैंने हर मंज़र देखा है
शीर्षक मैंने हर मंज़र देखा है
मैंने हर मंज़र को देखा है
हॅ़सते हुए घर में सबको रोते देखा है
उम्र में अभी बहुत नादान हूॅं मैं
फिर भी ख़्वाहिशों का दम घुटते देखा है।
मैने हर मंज़र को देखा है……..
सब की जान बनकर ख़ुद को
बिन पंखों के आकाश में उड़ते देखा है
कुछ ग़लतफ़हमियों में खुद को पल भर
में फिर फ़र्श पर बेजान पंछी
की तरह गिरते देखा है।
मैने हर मंज़र देखा है….…
ख़ुद की जीत पर कभी ज़श्न मत मनाना
मैंने ज़श्न को भी हार में बदलते देखा है
गु़रुर ना कर कभी खुद पर इतना
मैंने गु़रुर को भी चूर-चूर होते देखा है।
मैंने हर मंज़र देखा है….
महफ़िल में बैठे लोगों की बात पर ग़ौर न कीजिए
उन्हीं लोगों को बाहर निकलते ही
मैंने रुख़ बदलते देखा है
जो सच के मुॅंह पर सच न कह पाया
अक्सर उन्हें ही महफ़िल में मैंने
सच-सच कहता हूॅं कहते सुना है।
मैंने हर मंज़र देखा है….
अक्सर जो बातें गुफ़्तगू में की जाती है
बड़ी खतरनाक होती है
शै और मात की अक़्सर वो साज़िश होती है।
ऐसे चेहरे पर मैंने अक्सर एक मुखौटा लगा देखा है।
मैंने मंज़र कर देखा है…..
हरमिंदर कौर
अमरोहा यूपी