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18 Sep 2023 · 1 min read

मैं शिव हूँ

मैं शिव हूँ
—————————
– अतुल मिश्र, प्रयागराज


मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ
मेरे नाम अनेक, मेरे रूप भी अनेक
किन्तु सृष्टि के कण- कण में मेरा सत्त्व है एक
मैं जीवन का संहारक , जीव का विमोचक
काल का नियंत्रक, ब्रह्माण्ड का संरक्षक
मेरे गले में है सर्पों की सुंदर – सी माला
मेरे भक्त मुझे कहते हैं सीधा , भोला- भाला
भस्म का ही अंगराग देह पर लगता हूँ
तीव्र मंदाकिनी को मैं जटा में समाता हूँ
चंद्र को मैं मस्तक पर करता हूँ धारण
हाथ का त्रिशूल करता है दुष्टों का निवारण
तांडव मुझे प्रिय है, त्रिनेत्र मैं कहलाता हूँ
देवों के संकट निवारण हेतु विष पी जाता हूँ
हिमालय मेरा वास है, काशी में भी निवास है
मैं ही अथ हूँ, मैं ही इति हूँ
मैं ही आदि हूँ, मैं ही अंत हूँ
मैं अजस्र, अमर, अमोघ, अनघ
मैं अमित, अनादि, अमिट, अपार
मैं ही सत्य हूँ, मैं ही सुंदर हूँ
मैं ही त्राण, मैं ही निर्वाण
जो आये मेरी शरण में ,जपे निष्काम
मैं विद्युत की गति से बनाऊँ उसका काम
भय मुझसे डरता है, काल मेरा चेरी है
मृगचर्म विराजता हूँ, अवधूत और अनहद हूँ
मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ
मैं शम्भु, शंकर, महेश,
चंद्रशेखर, भव, और हर- हर हूँ
मेरा डमरु करे निनाद, दूर हो जाए सब अवसाद
मैं शंकर, भयंकर, प्रलयंकर हूँ
मैं तुममें, उसमें, सब में समाया हूँ
मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ
मेरे नाम भी अनेक , मेरे रुप भी अनेक।।

——–/——-/——

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