मैं पीड़ा हू
मैं पीड़ा हूँ
मैं पीड़ा हूँ उस दरिद्र की
जो नित भूखा सो जाता है
पीने को तो आंसू खूब हैं
भूख लगे तो गम खाता है
मैं पीड़ा हूँ उन हाथों की
जो दिन – रात कमाता है
वो सो जाता है खुले में
जो औरों के घर बनता है
मैं पीड़ा हूँ उस हृदय की
जिसे हर एक ठेस पहुंचाता है
मैं पीड़ा हूँ उस बेटी की
जिसका जन्म नहीं हो पाता है
मैं पीड़ा हूँ उस पीड़ा की
जिसे कोई समझ न पाता है
इन पीङाओं में सिल्ला’ का दिल
नित द्रवित हो जाता है
-विनोद सिल्ला