मैं नास्तिक क्यों हूॅं!
शहीदे ऐ आजम भगत सिंह
मैंने कब कहा कि, मैं बचपन से नास्तिक था
मैंने यह भी कब कहा कि,
मुझमें अहंकार भरा हुआ था
सनातन धर्म का मैं पुजारी था
सत्य राह पर चलना ही मेरा धर्म था ।
कर्म ही मेरा प्रथम उद्देश्य था
मैं अधिकार नहीं जमा रहा हूॅं
बस कुछ बातें हैं जो बता रहा हूॅं
ईश्वर के अस्तित्व को नकार कर
जरूरत से ज्यादा आगे जा रहा हूॅं।
मैं कोई शेखी नही बघार रहा हूॅं
मैं मानवीय कमजोरियों से ऊपर जा रहा हूॅं
मेरी स्वेच्छाचारी कहकर निंदा की जाती है
अपने विचार दोस्तों पर ना
थोपने की हिदायत दी जाती है।
मैं एक मनुष्य हूॅं और इससे अधिक कुछ नहीं
इससे ज्यादा मैं अपनी शेखी बघारता नहीं
अपनी कमजोरियां भी मैं किसी को बताता नहीं
इससे ज्यादा अपने विचारों का दावा मैं करता नहीं।
मैं तो अपने प्रतिदिन के अस्तित्व को
नकारता ही नहीं मैं न तो एक प्रतिद्वंद्वी
हूॅं न हीं एक अवतार और नहीं स्वयं परमात्मा।