मैं नदी तू मेरा किनारा है (ग़ज़ल)
मैं नदी तू मेरा किनारा है
तूने हल पल दिया सहारा है
है हमारा अटूट ये बन्धन
तू मेरी माँग का सितारा है
तू मेरा चाँद और है सूरज
मेरी आंखों का तू ही तारा है
टूटकर भी नहीं बिखरता ये
दिल को कहना नहीं बिचारा है
लब पे इनकार आंखों में है हाँ
दिल का भी क्या कोई इशारा है
सामने अपने पाया है तुझको
दिल ने जब भी तुझे पुकारा है
रूप इस ज़िन्दगी का भी मैंने
अपने दर्पण में ही सँवारा है
तू जहाँ साथ ‘अर्चना’ होती
लगता सुंदर वही नज़ारा है
09-03-2018
डॉ अर्चना गुप्ता