मैं दर्पण हूँ
मैं दर्पण हूँ
न रंगभेद, न जातिवाद,
हो हर्ष तुम्हें या हो विसाद।
अतिरिक्त न कुछ बतलाता,
जो हो तुम वही दिखाता ।
तुझ पर सम्पूर्ण समर्पण हूँ।
मैं दर्पण हूँ।
काले गेसू लट घुंघराले ,
या मोटे नैना मतवाले।
मूँगे से ओंठ हो लाल लाल,
या सुर्ख गुलाबी गोल गाल।
ज्यों का त्यों करता अर्पण हूँ।
मैं दर्पण हूँ।
मुखड़े पर परम् कुरूपता हो,
अथवा भरपूर सुंदरता हो।
नव रस अपने में समा लिया,
जो पूंछा वो दिखला दिया।
न घृणा न आकर्षण हूँ।
मैं दर्पण हूँ।
एक धक्का भर जीवन मेरा,
सच्चा दर्पण हृदय तेरा।
तन की सुंदरता फानी है,
जिंदगानी आनी जानी है।
उर अंतर्मन से निहार स्वयं,
हो जायेगें सब दूर वहम।
अंदर का रूप दिखा देगा।
सच में क्या हो बतला देगा।
मैं तो मिट्टी का बर्तन हूँ।
मैं दर्पण हूँ।