मैं तुम्हारे स्वरूप की बात करता हूँ
मैं तुम्हारे रूप की नहीं,
तुम्हारे स्वरूप की बात करता हूँ,
मैं तुम्हारी सूरत की नहीं,
तुम्हारे मन की बात करता हूँ,
तुम्हारी आत्मा की बात करता हूँ,
जो होती है सभी में मौजूद,
और जो बनाती है मनुष्य को,
सर्वोत्तम – कुलीन या अधम – पापी,
आत्मा से ही श्रेष्ठ होता है मनुष्य,
सच में परमात्मा यानि कि ईश्वर।
मैं तुम्हारे तन की नहीं,
तुम्हारे मन परिवर्तन की बात करता हूँ,
जिसमें होता है अहम- वहम और पाप,
मैं तुम्हारी चंचलता की बात नहीं,
तुम्हारी सभ्यता और हया की बात करता हूँ
जो बनाती है मनुष्य को संस्कारी,
जो मनुष्य बनाती है मनुष्य को परोपकारी,
जब नहीं हो मन में अभिमान और कुटिलता।
मगर तुझको जो शक है मुझ पर,
तुझको आज यह बताना चाहता हूँ,
कि अगर मैं होता आवारा- बेशर्मी,
नहीं करता मैं तेरी इज्जत का खयाल,
और नहीं बनाता मैं दुश्मन जमाने,
तेरे सम्मान की रक्षा के लिए ऐसे,
और अपने काव्य में सजाकर तुझको,
नहीं करता मैं तुम्हारी तारीफ जमाने में।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
मोबाईल नम्बर- 9571070847