मैं जाऊं कहां,
कोई तो बताए मैं आ जाऊं कहां,
अपनी करुण पुकार सुनाऊं कहां,
जिसे हम मुसीबत में पुकारते थे,
जा कर दरवाजे दरवाजे हम सदके करते थे,
आज सभी के कपाट बंद हैं,
कोई तो बताए मैं आ जाऊं कहां,
कोई यह तो बताए आज उसे भी डर है…… क्या
इंसानों की इस बीमारी से….
तो फिर मैं तुच्छ सा प्राणी जाऊं कहां,
चाहत तो है मिलने की उससे,
मगर अब वेदो पर ही भरोसा है,
इस महामारी ने यह तो सिखाया हमें,
इमारतों को इलाज के लिए दे दो,
इबादत तो मन मंदिर में भी हो सकती है,
पता है मुझे मैं जाऊं कहां,
ना किसी से बैर है रखना,
मन तीरथ सारे धाम,
हाथ हमेशा ऊपर हो मेरा,
पूरे हो सबके काम….
उमेंद्र कुमार