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11 May 2023 · 1 min read

मैं चला बन एक राही

मैं चला एक राही बनकर
राह साधे मंजिल की ओर
कुछ कदमे ही तो चली हमने
मन करता लौट चलें दूसरे ओर
कुछ लोग मिले कुछ बातें की
कुछ सफल मिले कुछ असफल
सफल मनुज की एक कॉमन…
सबने अपनी कथा की सार
अपने कह सुनाया कि हम भी
मंजिल हेतु सोच बढे थे इस ओर

हम भी एक संभावनाएं हारी
दो, तीन, चार… जैसे कई हारे
पर हमने कभी धीरज ने हारी
तभी तो मिली है मंजिल आज…

कान लगाकर हमने सनी
उस असफल से सफल
मनुज की सफल गाथा
सबका एक कोमन मुलमंत्र
धीरज रखने की जो थी
उसे मैं ले उड़ा गगन में
मुझे अब विश्वास हो चला
अब शिखर पा के ही लौटूंगा

कदम बढ़ा बढ़ा फिसल कर
बढ़ रहा अपनी मंजिल की ओर
इस आस में कि एक न एक दिन
मंजिल मिलेगी ही, मंजिल मिलेगी ही।

कवि:- अमरेश कुमार वर्मा

Language: Hindi
141 Views
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