** मैं गीत कहूं या कथा कहानी **
यह केवल मेरे भावों का
सायास अंकन ना होकर
अनायास अंकन है
शायद ………………
१.६.१६ ,प्रातः८.१५
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ग़ज़ल कहूं या गीत कहूं
ये रीत पुरानी आई है
कहता आया हूं मैं जब तब
बस कथा कहानी छायी है
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हरियाली लहराती हर-हर
सूर्य -किरण लहराई है
मानव के मन में देखो
अब नई ऊष्मा आई है
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होकर ऊर्जस्वित इससे
वो करता कर्म अनोखा है
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जिससे देखो इसकी प्रतिभा
कथा कहानियों में छायी है
है अनुपम उपहार धरा का
मानवता सरसायी है
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मैं गीत कहूं या ग़ज़ल कहूं
मेरी हर छोटी सी रचना में
रचनाकार की रचना छायी है
ना कवि ना गायक हूं मैं तो
इक नायक का सेवक मैं तो
देता जो हर मन को दौलत
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बैठा कवि हर दिल के अंदर
सूरज को करता है जो रोशन
करता है हर मन को रोशन
मुझको ना समझो अब कवी
जो मन में आता कह लेता
मन में मस्ती छायी है
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ये धरा धरोहर है उसकी
मैं गीत गुनगुनाता हूं उसका
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ना जाने कब रहन जिंदगी
से छुटकारा मिल पाएगा
घुट-घुट लिखता हूं मैं गज़ल
जो कौन उसे दोहराएगा
मेरे मन के भावों का अंकन
कौन ‘ मधुप’ कह पायेगा
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गीत कहो या गज़ल कहानी
सबके ह्रदय को सरसायेगा
मैं गीत कहूं या कथा कहानी
ये रीत सदा चली आयी है ।।
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?मधुप बैरागी