मैं कुछ नहीं चाहती
मैं कुछ नहीं चाहती,
कुछ नहीं मांगती तुमसे।
क्या मांगू, सब कुछ तो छूट गया अपना,
वो रसोई, वो कमरा, वो छत,वो दरवाज़ा।
जहां खेलकर बढ़ी हुई वो आंगन, वो संगी साथी
सब वहीं रह गया,
याद बनकर बस मेरी आंखों से बह गया।
चांदी सोना, हीरे मोती ये तो सब कुछ ही देर है,
दौलत, रुपया, पैसा ये सब मिट्टी के ढेर है।
मुझे नहीं चाहिए रेशमी साड़िया और गाड़ियां न ही मुझको बड़े घर चाहिए,
जो मुझे समझ सके बिना बोले इक ऐसा दोस्त एक ऐसा हमसफर चाहिए।