Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
25 Jul 2019 · 1 min read

मैं कुछ- कुछ बदलने लगी हूं –

पहले खुश होती थी अपनों की ख़ुशी से,
अब खुश अपने से होने लगी हूं।
ज़िंदगी का आधा पड़ाव,
धूप और उमस में गुज़ार दिया,
अब खुद छांव में रहने लगी हूं।
बड़ी चाह थी सबको आगे बढ़ा दूं,
अब खुद भी आगे मै बढ़ने लगी हूं।
एक उम्मीद थी कि ख़ुश कर दूंगी सबको,
मगर विफल हो ख़ुश अब मैं रहने लगी हूं।
जग को बदलने का छोड़ा इरादा,
अब मैं तो खुद को बदलने लगी हूं।
मै चौराहे की तस्वीर भला क्यों सुधारूं,
मै खुद की ही तस्वीर को बदलने लगी हूं।
मैं क्यों दूसरों के अवगुणों को निहारूं,
देखकर पर गुणों को संवरने लगी हूं।
करूं काम जो भी मेरा दिल जो चाहे,
मैं अब अपने दिल की ही सुनने लगी हूं।
जब रिश्तों में चलने लगा दिमाग़,
फैला आपस में अलगाव तो ,
रेखा चुप हो वक्त की नज़ाकत को समझने लगी हूं।

2 Likes · 298 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
नज़रें बयां करती हैं,लेकिन इज़हार नहीं करतीं,
नज़रें बयां करती हैं,लेकिन इज़हार नहीं करतीं,
Keshav kishor Kumar
योग हमारी सभ्यता, है उपलब्धि महान
योग हमारी सभ्यता, है उपलब्धि महान
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
अस्तित्व की पहचान
अस्तित्व की पहचान
Kanchan Khanna
हिंदी दोहा शब्द - भेद
हिंदी दोहा शब्द - भेद
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
उद् 🌷गार इक प्यार का
उद् 🌷गार इक प्यार का
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
परित्यक्ता
परित्यक्ता
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
*फ़र्ज*
*फ़र्ज*
Harminder Kaur
हजारों  रंग  दुनिया  में
हजारों रंग दुनिया में
shabina. Naaz
लार्जर देन लाइफ होने लगे हैं हिंदी फिल्मों के खलनायक -आलेख
लार्जर देन लाइफ होने लगे हैं हिंदी फिल्मों के खलनायक -आलेख
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
ज़िंदगी
ज़िंदगी
लोकेश शर्मा 'अवस्थी'
विश्व हिन्दी दिवस पर कुछ दोहे :.....
विश्व हिन्दी दिवस पर कुछ दोहे :.....
sushil sarna
Kitna hasin ittefak tha ,
Kitna hasin ittefak tha ,
Sakshi Tripathi
3162.*पूर्णिका*
3162.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
घाघरा खतरे के निशान से ऊपर
घाघरा खतरे के निशान से ऊपर
Ram Krishan Rastogi
साथ
साथ
Dr. Pradeep Kumar Sharma
""मेरे गुरु की ही कृपा है कि_
Rajesh vyas
सिखों का बैसाखी पर्व
सिखों का बैसाखी पर्व
कवि रमेशराज
घणो ललचावे मन थारो,मारी तितरड़ी(हाड़ौती भाषा)/राजस्थानी)
घणो ललचावे मन थारो,मारी तितरड़ी(हाड़ौती भाषा)/राजस्थानी)
gurudeenverma198
जिंदगी बेहद रंगीन है और कुदरत का करिश्मा देखिए लोग भी रंग बद
जिंदगी बेहद रंगीन है और कुदरत का करिश्मा देखिए लोग भी रंग बद
Rekha khichi
जब घर से दूर गया था,
जब घर से दूर गया था,
भवेश
*चली राम बारात : कुछ दोहे*
*चली राम बारात : कुछ दोहे*
Ravi Prakash
#मुक्तक
#मुक्तक
*Author प्रणय प्रभात*
"एक सुबह मेघालय की"
अमित मिश्र
रण प्रतापी
रण प्रतापी
Lokesh Singh
आदिवासी
आदिवासी
Shekhar Chandra Mitra
ना मंजिल की कमी होती है और ना जिन्दगी छोटी होती है
ना मंजिल की कमी होती है और ना जिन्दगी छोटी होती है
शेखर सिंह
"गौरतलब"
Dr. Kishan tandon kranti
*लब मय से भरे मदहोश है*
*लब मय से भरे मदहोश है*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
तुम खेलते रहे बाज़ी, जीत के जूनून में
तुम खेलते रहे बाज़ी, जीत के जूनून में
Namrata Sona
इश्क जितना गहरा है, उसका रंग उतना ही फीका है
इश्क जितना गहरा है, उसका रंग उतना ही फीका है
पूर्वार्थ
Loading...