मैं कविता हूँ
“विश्व कविता दिवस” पर मेरे हृदय के सुरों को शब्दमाला में गूंथने वाली साहित्य जगत में मेरी सबसे चहेती विधा “कविता” को मेरी सस्नेह भेंट समर्पित है —
मुझे पहचानिए
कौन हूँ मैं????
मैं कविता हूँ ।
जी हाँ मैं कविता हूँ।
मैं कई जन्म लेती हूँ
अलग अलग रूपों में
कई जन्मदात्री हैं मेरी
जब तक संसार में
भावनाएं जीवित हैं
उद्गार मौजूद हैं
मैं रची जाती रहूंगी।
क्यों कि मैं कविता हूँ।
कहीं माँ के आँचल की कोमल बयार
से जन्म लिया है मैंने
तो कहीं
एक नव विवाहिता के अंतर्मन में
जलते बुझते दीपों को
मेरा नाम दिया है
कभी मैं भूखे गरीब की
जुबां से पैदा होती हूँ
तो कभी प्रतीक्षा में विकल
विरहन की पीड़ा से
जन्म ले लेती हूँ।
हां मैं एक कविता हूँ ।
कभी सरिता का कल कल करता सुर
तो कहीं धुंआ जल प्रपात का
तो कभी उत्तुंग शिखर की ऊंची चोटी
कहीं सावन की फुहार मेरे
जन्म की वजह बनती है
तो कहीं चुभती चिलचिलाती
धूप में नंगे पाँव
कचरा बीनते नन्हे बच्चे
मेरी उत्पत्ति के लिए
जिम्मेदार बन जाते हैं।
मैं कविता हूँ
वसुधा से नभ तक
सुबह से शाम तक
दिन से रात तक
जीवन से मृत्यु तक
या यूँ समझिए कि
सृष्टि के आरंभ
से अंत तक
पुनः पुनः जन्म लेती रही हूँ
और बारम्बार लेती रहूँगी
जब तक भावनाएं जागती रहेंगी
उद्गार उठते रहेंगे
मैं जन्म लेती रहूंगी।
भेष बदल बदल कर।
यह तो अपना सूक्ष्म परिचय
दिया है मैंने।
मैं कविता हूँ।
मेरा परिवार
संपूर्ण विश्व में फैला है
और मैं वसुधैव कुटुम्बकम
की एक सूक्ष्म कणिका हूँ।
मैं फैले विस्तृत साहित्य संसार
की सबसे प्यारी विधा हूँ
मैं कविता हूँ ।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान)
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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