मैं और तुम
मै और तुम
तुम करुणा की मूर्तिमयी दिल ,
मै पत्थर दिल तन्हा हूँ ।
मै राह देखता लंबे पल तक
तुम सुंदर पथ की कविता हो ।
तुम ममता की दिव्य ऋचा ,
मै प्यासा रिक्त कुआं हूँ ।
तुम जीवन दर्शन दृष्टा की ,
मोह ग्रसित मै केवल मन हूँ ।
तुम हो मेरी अभिलाषा ,
मै प्रेरक संस्करण हूँ ।
मै ज्ञान का पथिक हूँ ,
तुम मेरी संरचना हो ।
तुम भावों की सकल कल्पना ,
मै कर बद्ध प्रार्थना हूँ ।
देवी !तुम करुणा की मूर्ति मयी दिल ,
मै पत्थर दिल तन्हा हूँ ।
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—–डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव