मैं एक दरिया हूँ
है हासिल जो वो भी थोड़ा नहीं है
ये भी बहुतों ने तो पाया नहीं है
समंदर सा नहीं क़द मेरा तो क्या
मैं इक दरिया हूँ जो खारा नहीं है
जुदा हैं पर निभायेंगे मुहब्बत
मुहब्बत तो फक़त पाना नहीं है
हूँ मैं क्यूँ मुन्तज़िर उसका यूँ जबकि
किया उसने कोई वादा नहीं है
खफ़ा है या उसे करना है दूरी
वो शिकवा आजकल करता नहीं है