मैं अभियंता…
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मैं अभियंता
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मैं अभियंता मातृभूमि को
तन मन अर्पित करता हूँ ।
भाव भरा अनुभूति और
ये जीवन अर्पित करता हूँ ।।
मैं अभियंता मातृभूमि को…………
स्व की भाषा बोल यथा
कुछ पुष्प बाग़ के डोल रहा ।
उन पुष्पों को मिट्टी की
गहराई अर्पित करता हूँ ।।
मैं अभियंता मातृभूमि को……………
माता के दामन में कुछ
खुदगर्जी ने व्यापार किया ।
उनके ही सुशिक्षा हेतु
संसाधन अर्पित करता हूँ ।।
मैं अभियंता मातृभूमि को…………..
कई युगों से इस धरती पर
लोप जनाधिकार हुआ है ।
उन्हीं जनाधिकारों के हेतु
मैं सबकुछ अर्पित करता हूँ ।।
मैं अभियंता मातृभूमि को……………
25 तक निःशुल्क हो शिक्षा
रोजगार प्रतिभा आधारित ।
सुविधा और संरक्षण हेतु
संजीवनी अर्पित करता हूँ ।।
मैं अभियंता मातृभूमि को…………
अंतिम भूखा पेट भरे तब
मेरे उर में प्राण भरेगा ।
मातृभूमि में न्याय के खातिर
मैं कंचन अर्पित करता हूँ ।।
मैं अभियंता मातृभूमि को…………
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सामरिक अरुण
देवघर झारखण्ड
17/05/2016