मैंने फत्ते से कहा
मैंने फत्ते से कहा
क्यों करते हों डाई।
उम्र पचासा हो गयी
चेहरे पर है झांई।
रंग रोगन से क्या बने,
जब गायब आधे बाल।
देह झुक गयी बीस अंश
बदल गई है चाल।
न हीरो न मॉडल बनना,
न कोई बॉयफ्रेंड।
फिर क्यों जारी है रखा,
हेयर डाई का ट्रेंड।
फत्ते स्माइल किया,
झटके सर के बाल।
सास बुलाया है मुझे,
जाना है ससुराल।
अभी तक जाता रहा हूं,
हीरो बन ससुराल।
साली सलहज हँसेगी,
देख के खिचड़ी बाल।
मैंने रिप्लाई किया,
सुन उल्लू के पट्ठे।
तब तू रहा पच्चीस का,
जब करता था ठट्ठे।
आधी उमर गुजर गई,
मिटी गाल की लाली।
साली सलहज भी हुई,
दो दो बच्चे वाली।
गुठली तुझमे है बची,
रहा आम न चौसा,
अब तू जिज्जा न रहा,
बन गया फूफा मौसा।
सब जन परदेसी भये,
सास ससुर है गाँव।
बिन बिस्तर की खाट है,
और नीम की छांव।
बारह व्यंजन अब नही,
मिलेगी रोटी दाल।
सास बुलाया है तुझे,
पूंछन को तेरा हाल।
फर्क जरा भी न पड़े ,
वहां न साली साले।
रखो बाल सफेद या,
डाई से करो काले।
सुन मेरे उपदेश को,
फत्ते कुछ झल्ला गया।
रंग कटोरी फेंक के,
नदी नहाने चला गया।
-सतीश सृजन