मेरे हमसफ़र
वो कुछ कहने से पहले ही जान लेते हैं ,
आंखों -आंखों में दिल में छुपे जज़्बात भी
पहचान लेते हैं ,
फ़रेबे मुस्कुराहट के पीछे छिपे दर्द से भी
अनजान ना रहते हैं ,
वो मेरे हम-नफ़स हम-नवाँ,
इस ज़िंदगी के सफ़र में हम-क़दम बन
मेरा साथ देते हैं ,
शायद मेरे दिल से उनके दिल तक कोई
राह जाती है ,
जो मेरे एहसास को उनके दिल के
पास ले जाती है,
ग़र वो न होते, तो गर्दिश -ए – दौराँ का ये सफ़र,
इस क़दर ख़ूबसूरत ना होता ,
हम सराबों में बेचैन भटकते रहते,
ज़िंदगी का मुकम्मल सिला हासिल ना होता।