मेरे पास भी बैठा करो …
मेरे पास भी बैठा करो
अलसाई सी अंगड़ाई से जब उठती हो
छोड़ मुझे रोज़मरा के कामों में लग जाती हो
मेरी आँखे कहती रहती हैं तुमसे
मेरे पास भी बैठा करो ….
भागती दौड़ती सबकी ज़रूरत पूरा करती हो
सबके चेहरे की शिकन दूर करती हो
मेरा दिल कहता रहता है तुमसे
मेरे पास भी बैठा करो …
देखते ही देखते दिन ढल जाता है
वो तुम्हारी साड़ी शाम तक कुम्हला सी जाती है
मेरा महकता कुर्ता कहता रहता है तुमसे
मेरे पास भी बैठा करो …
क्या कभी थकती नहीं हो ?
लबों की ये मुस्कान क्या पहन कर जीती हो ?
मेरा बाँवलापन कहता रहता है तुमसे
मेरे पास भी बैठा करो …
दिल की धड़कन से सब समझ लेती हो
दर्द आँखों से पढ़ लेती हो
पर मेरा दीवनापन कहता रहता है
मेरे पास भी बैठा करो ….
अरसा हो गया साथ निभाते निभाते
वक़्त मानो रेत सा फिसलता रहा
हमारी उम्र का तक़ाज़ा कहता रहता है
मेरे पास भी बैठा करो …….