मेरे जी में जो आये करूँ
मेरे जी में जो आये करूँ
पूछता क्यों किसी से रहूँ
लाख प्यारी है ये ज़िन्दगी
मौत लेकिन बड़ी, सच कहूँ
दफ़्न होने का क्यों ग़म मुझे
क़ब्र में भी मैं तनहा रहूँ
मुझको ख़ौफ़े-खुदा है फ़क़त
इक खुदा से ही बस मैं डरूँ
खा रहा हूँ मैं रब का दिया
आपके तीर फिर क्यों सहूँ