“ मेरे घर को सजा देना ”
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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हमेशा राह तकता हूँ कहीं से तुम चले आना !
खुशी के पल में आके मेरे घर को सजा देना !!
हमेशा राह तकता हूँ कहीं से तुम चले आना !
खुशी के पल में आके मेरे घर को सजा देना !!
जरा सी आहटें होती है तो ,
लगता है तुम ही आ गए !
महक उठती है धरती और ,
अम्बर पे यूँ बादल छा गए !!
जरा सी आहटें होती है तो ,
लगता है तुम ही आ गए !
महक उठती है धरती और ,
अम्बर पे यूँ बादल छा गए !!
दबे पाँवों से आकर के मेरी दुनियाँ बसा देना !
खुशी के पल में आके मेरे घर को सजा देना !!
हमेशा राह तकता हूँ कहीं से तुम चले आना !
खुशी के पल में आके मेरे घर को सजा देना !!
ना रातों में है मुझको चैन ,
ना सारा दिन ही सोता हूँ !
मेरा तुम हाल मत पूछो ,
मैं तुझे ही याद करता हूँ !!
ना रातों में है मुझको चैन ,
ना सारा दिन ही सोता हूँ !
मेरा तुम हाल मत पूछो ,
मैं तुझे ही याद करता हूँ !!
बहुत अब हो गयी दूरी इसे जल्दी मिटा देना !
खुशी के पल में आके मेरे घर को सजा देना !!
दबे पाँवों से आकर के मेरी दुनियाँ बसा देना !
खुशी के पल में आके मेरे घर को सजा देना !!
हमेशा राह तकता हूँ कहीं से तुम चले आना !
खुशी के पल में आके मेरे घर को सजा देना !!
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत
17. 02. 2022.