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9 Jan 2023 · 1 min read

मेरी मोहब्बत, श्रद्धा वालकर

वो मेरी नादान मोहब्बत का परवाज था,
मैं उसके कदमों पर क़दम रखती रही.!
वो मेरा सरताज बनकर आगे चलता रहा,
और मैं उस फ़रेब में खुद को मुकम्मल करती रही..!!

दूरियां ज्यादा नहीं चली थी,
फिर भी मेरे पास मेरा कुछ ना रहा था.!
वो बस हँसते हुए मांगता रहा,
और मैं उसे ख़ुदा समझकर खुदको अर्पित करती रही.!

उसका फ़रेब भी हिकीक़त था,
और मैं उसे मोहब्बत की हकीकत समझती रही.!
वो अपने नाटक की पंक्तियां लिखता रहा,
मैं उसके रंगमंच पर अभिनय करती रही.!!

जो भी मेरा था वो उसका ही था,
मैं तो बस कीचड़ में कमल बनकर खिलती रही.!
वो समय दर समय मेरी खुशबू खींचता रहा,
मैं उसी कीचड़ में हँसती रही.!!

वो पानी था,
मैं दूध समझकर उसमें घुल गयी.!
मेरा हंस उसकी कैद में था,
इसलिए ख़ुद को पानी से अलग ना कर सकी.!!

Language: Hindi
5 Likes · 2 Comments · 224 Views
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