” मेरी मित्रता और मेरा माउस “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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अच्छा हुआ
मित्रता अब कंप्यूटर के माउस में
कैद हो गयी,
हमारी घनिष्टता
अब सिमटकर उंगलियों
में रह गयी !
सुना था
हमारे दिन भी आयेंगे
हम सबको अपनी उंगलियों पर नचाएंगे,
साकार सपनें
हो गए मेरे
अब हम भी अपना जलवा दिखायेंगे !
मित्रता पहले परखते थे
सामने से
विचारों का मेल होता था ,
सहयोग की भावना,
मिलन का आभास,
हमारे बीच होता था !
मित्रता हम उम्र होती थी,
हमें सब जानते थे ,
पहचानते थे ,
दुखः सुख में हम सब साथ होते थे !
अब भले इन बंधनों से दूर
चल कर आ गये,
विश्व के लोंगों को अपनी उंगलियों से
अपना मित्र बना गये !
एक पल में बनाते
मित्रता की फौज को ,
मन नहीं भाता
किसी से
क्षण में मिटाता लोग को !
माउस को हम
पूजते हैं
यही हमारा मान रखता !
मित्रता को जोड़ने
या तोड़ने का बस यही सब कार्य करता !!
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखंड