मेरी बेटी का सोलहवाँ बसंत
अभी देखे हैं तुमने सोलह बसंत
आगे आँसमा है अनंत
ना हिचक पंख पूरे फैला
तेरी उड़ान का ना हो कोई अंत ,
सारा जहाँ है तुम्हारा
कदम बढ़ा ठीक उसी तरह
जैसे रखा था पहला कदम
ऊँगली पकड़ के मेरा ,
अब मेरी ऊँगली नही है
तुम्हारे हाथ में
तो क्या
पूरी की पूरी खड़ी हूँ
तुम्हारे साथ में ,
सोचो मत ना ही डरो
बस उड़ो स्वचछंद उन्मुक्त
हवा के साथ बहो ,
किन्तु इस बहाव में
दिशा मत खोना
सही दिशा के साथ
जीवन है सोना ,
इस बेशकीमती जीवन को पहचानो
ये व्यर्थ ना हो इसको जानो ,
इन एक – एक पल को जियो
जीवन के इस अमृत को पीयो ,
ये पल जीवन का आधार है
इन्हीं पलों में जीवन का सार है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा ,16/10/12 )