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20 Jun 2022 · 4 min read

मेरी प्रिय कविताएँ

समीक्ष्य कृति- मेरी प्रिय कविताएँ
कवि- अनिरुद्ध प्रसाद विमल
प्रकाशक-Best Book Buddies, New Delhi-20
प्रकाशन वर्ष- 2019 ( प्रथम संस्करण)
मूल्य- ₹ 250/-
चिंतन की उत्कृष्टता,सामाजिक सरोकारों से संपृक्ति ,घनीभूत संवेदनाओं के साथ-साथ अनुभूति की सच्चाई, भावों की गहनता, एवं सूक्ष्म भावों की कुशल अभिव्यंजनात्मकता अभिव्यक्ति किसी भी कृति एवं कृतिकार को कालजयी बनाने के लिए आवश्यक उपादान हैं। वरिष्ठ साहित्यकार श्री अनिरुद्ध प्रसाद विमल जी जो कि अंगिका और हिंदी के साहित्यकार है।आपने गद्य और पद्य दोनों के माध्यम से हिंदी और अंगिका के साहित्य भंडार को समृद्ध किया है।’मेरी प्रिय कविताएँ’ उनकी सद्यः प्रकाशित कृति है, जिसमें 67 कविताएँ संकलित हैं। इन कविताओं में कवि अंधेरे में रोशनी तलाशता हुआ समाज को एक दिशा देने का प्रयास करता है।
संकलन की पहली कविता ‘बदलाव’ पढ़कर ही पाठक के मन में पुस्तक को पढ़ने की एक ललक पैदा हो जाती है। कवि ने जिस तरह बिंबात्मक के माध्यम से बात को प्रत्यक्षीभूत किया है, वह बरबस ही मन को मोह लेती है।अकर्मण्यता किसी भी स्थिति में उचित नहीं होती, व्यक्ति को कर्मशीलता का पथ चुनना ही होता है।कर्मशीलता व्यक्ति में स्वाभिमान और साहस का संचार करती है।
अवश/ परकटे पक्षी की तरह/ निढाल पड़ा मधुआ/ उठा/ ठीक वैसे ही/ जैसे जेठ का सूरज/ उसने उठा लिया/ तमक कर/ अपने कंधे पर/ कुदाल/ और उसका चेहरा/ दमकने लगा/ परशुराम की तरह। (पृष्ठ -13)
कवि का स्पष्ट मत है कि कवि को सदैव सचेत और सजग होना चाहिए।उसके पास एक चौकस दृष्टि होनी चाहिए।इतना ही नहीं कवि यह भी धर्म है कि वह देश-समाज की प्रत्येक घटना को निर्भीकता पूर्वक व्यक्त कर सके।कवि गूँगा और अंधा नहीं हो सकता।यदि वह ऐसा करता है तो वह कवि कहलाने योग्य नहीं होता। साहित्य समाज का दर्पण होता है यदि कवि अपने कर्म का निर्वहन नहीं करेगा तो साहित्य के माध्यम से समाज की सही तस्वीर पेश नहीं होगी।इस संबंध में विमल जी की कविता (1)
द्रष्टव्य है-
कविता अंधी नहीं होती/ कविता गूँगी नहीं होती/ कविता बर्बरीक के कटे सिर की तरह / सब कुछ देखती है/ सब कुछ बोलती है/ वह बोलेगी संसार की लीलाकथा/ बिलखते बच्चों की व्यथा/ सत्ता के स्वार्थ में/ युग वैभव का युगांतरकारी (पृष्ठ-40)
हर गरीब की पीड़ा एक जैसी होती है।वह देश दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न रहता हो। पेट की आग की भयावहता का चित्रण करते हुए कवि ने उल्लेख किया है-
मेरा पेट/ एक तड़पता हुआ तावा है/ जो आग पर/ तपता तो है/ पर इस पर रोटी नहीं सिकती। (पृष्ठ-43)
समाज को दिशा देना कवि का एक महत्वपूर्ण कार्य होता है।इसके लिए यह आवश्यक होता है कि कवि का दृष्टिकोण आशावादी हो।यदि वह स्वयं निराशा के गर्त में चला जाएगा तो समाज का पतन निश्चित है।समाज को सदैव विकासोन्मुख और सकारात्मक ऊर्जा से ओत-प्रोत होना चाहिए।कवि और कविता को लेकर कवि आशावादी है। उसका मानना है कि जब तक सृष्टि है ,तब तक कवि है-
कवि को/ शांत, निश्चल देखकर/ वे चारों/ चार तरफ से आए/ एक ने कहा/ कवि सो रहा है/ दूसरे ने कहा/ कवि संज्ञाशून्य हो गया है/ तीसरे ने कहा/ कवि मर गया/ इस तीसरे की बात सुनकर/ चौथे ने इसकी नासमझी पर / हँसते हुए कहा-/ कवि जिन्दा है/ कवि कभी मर नहीं सकता। (पृष्ठ-55)
देश के विकास और उन्नयन में युवा वर्ग की महती भूमिका होती है।इतिहास गवाह है कि बदलाव के लिए प्रत्येक समय में युवा वर्ग का ही आह्वान किया गया है।भले ही, सामान्य परिस्थितियों में युवा पीढ़ी को अनुभव हीन कर खारिज कर दिया जाता हो,पर विषम परिस्थितियों में अगर मनोवाँछित बदलाव लाना होता है तो युवाओं की ही आवश्यकता पड़ती है।विमल जी ने ‘सच्चा यौवन’ कविता में इस बात को रेखांकित किया है-
काल सर्प-सा/ धनुष डोरी पर/ जो नित क्षण-क्षण / है चढ़ जाता।
यौवन उसका ही यौवन है/ जो नहीं मरण से है डरता।
शब्द-शब्द में अग्निबाण सा/ जो जोश लिए है बढ़ता।
यौवन सच में वह यौवन/ जो तलवारों पर चलता। मिट्टी माँग रही है यारों/ तुम से फिर कुर्बानी।जो मिट्टी की मांग सुने सच में वही जवानी। (पृष्ठ-71)
राजनीति का एक विद्रूप चेहरा देश में दिखाई देता है, जिसका उद्देश्य जनता को केवल वादों और भाषणों के माध्यम से वोट हासिल करना है। जनता की कठिनाइयों और समस्याओं से उसका कोई सरोकार नहीं होता। विमल जी बड़ी बेबाकी से ‘भाषण’ कविता में व्यंग्य के रूप में नेताओं के चरित्र को रूपायित किया है-
वह/ भाषण देता है/ और/ आप कहते हैं/ वह/ कुछ नहीं करता है। (पृष्ठ 83)
हर व्यक्ति का चीज़ों को देखने और समझने का दृष्टिकोण होता है।अपनी ‘सच्चाई’ कविता में कवि ने इस बात को व्यक्त करने का प्रयास किया है।अमीर को आसमान में चमकते चाँद-तारों में सौंदर्य नज़र आता है तो गरीब को अपने आगे से फेंकी गई थाली का छितराया हुआ अन्न दिखाई देता है-
हाँ, मेरे दोस्त!/ अब तुम जो चाहो कहो/ कह लो/ कि यह आसमान का चाँद/ कितना अच्छा है/ कितने अच्छे हैं ये सभी तारे/ लेकिन मैं जानता हूँ/ जानता हूँ कि सच्चाई क्या है? ( पृष्ठ-100)
कि तुमने गुस्से में आकर/ अन्न से भरी थाली को/ मेरी भूखी आँखों के सामने / उठाकर ऊपर उछाल दिया था/ सच कहता हूँ/ मैं अभी भी भूखी आँखों से/ ताक रहा हूँ ऊपर टकटकी लगाये/ उस उल्टी थाली और छिरयाये अन्न को/ तुम जिसे,/आज भी खूबसूरत चाँद और तारे कहते हो।( पृष्ठ-101)
‘मेरी प्रिय कविताएँ’ कृति में विमल जी ने सामाजिक विषमता और विद्रूपता का सहज रूप में चित्रण किया है।कविताओं की लाक्षणिकता और प्रतीकात्मकता काव्य को सहज ही संप्रेषणीय बना देती है।कवि ने अपने काव्य में ग्राम्य जीवन के यथार्थ को सजीव अभिव्यक्ति प्रदान की है।कवि ने अपनी बात को प्रत्यक्षीभूत करने के लिए पौराणिक पात्रों- परशुराम, बर्बरीक आदि का बड़ी कुशलता के साथ प्रयोग किया है।’मेरी प्रिय कविताएँ’ केवल विमल जी की प्रिय कविताएँ नहीं हैं अपितु सामान्य पाठक की भी प्रिय कविताएँ हैं। ये हिंदी साहित्य के काव्य क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण कृति है।निश्चित रूप से यह कृति पठनीय एवं संग्रहणीय है।विमल जी को इस कृति के लिए मेरी अशेष शुभकामनाएँ।
डाॅ बिपिन पाण्डेय

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