मेरी प्रतिभा
जब तुम पास आती हो,
हवा में गूँजता है कोई मधुर राग,
तुम्हारे बालों की महक से,
जाग उठता है मेरे भीतर का हर आग।
तुम्हारी उँगलियों का कोमल स्पर्श,
जैसे बारिश की पहली बूंद का एहसास,
मेरी आत्मा में उतरता है
और छोड़ जाता है अनंत प्यास।
तुम्हारी साँसें,
जैसे धीमी लहरें किनारों को चूमती हैं,
मेरी रूह की हर गहराई
तुम्हारे होने में डूबती है।
तुम्हारी आँखों का सागर,
जहाँ हर हसरत गोता लगाती है,
वो खामोश लम्हे,
जिनमें हर इच्छा बस तुम्हें छूकर गुजरती है।
तुम्हारा हर आहट,
जैसे एक कविता का नया अध्याय,
तुम हो मेरी प्रतिभा,
और मैं तुम्हारे प्रेम का पर्याय।
आओ, इस पल को रोक लें,
जहाँ सिर्फ हम हैं और हमारा होना,
जहाँ प्रेम और इच्छा का मिलन,
संसार से परे का कोई कोना।
चेतन घणावत स. मा.
साखी साहित्यिक मंच, राजस्थान