मेरी पावन मधुशाला
मेरी पावन मधुशाला
आया था जमकर पीने को,मिली नहीं मादक हाला;
ठगा हुआ सा देख रहा था,घर-घर में फ़ूटा प्याला;
मन की मदिरा गिरी हुई थी,अपमानित सा था साकी;
दीवारें भी चीख रही थीं,उजड़ गयी थी मधुशाला।
रचनाकर डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी-221405