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23 Sep 2022 · 1 min read

मेरी पहली शिक्षिका मेरी माँ

मेरी पहली शिक्षिका मेरी माँ

क्या लिखूँ मैं तुझपर,
तु अलिखित कहानी है माँ,
तेरी दी हुई शिक्षा,
मुझे याद ज़बानी है माँ।

मैं कच्ची मिट्टी की भाँति,
तु कुम्हार पक्की है माँ,
रख चाक रूपी हाँथो में हाथ मेरा,
तू ही तो घड़ा सी बनाई है माँ।

शैशव अवस्था का वह क्षण,
जब एक शब्द भी न बोल पाती थी माँ
ता…. ता से पा…. पा बोलना,
तु ही तो सिखाती थी माँ।

हाँथो में लेकर हाथ मेरा,
एक एक कदम चलना सिखाती थी माँ
उल्टी चप्पल जब पहना करती थी,
उसे सीधा तु ही तो कराती थी माँ।

स्मरण करती हूँ जब उस क्षण को,
सर्व प्रथम तेरी ही याद आती है माँ,
जीवन की पहली शिक्षा ,
तुझसे ही तो पाई है माँ।

कुछ उल्टी गिनतियाँ,
करनी भी तूने सिखाई है मां ,
दो रोटियों को एक कहकर,
तूने ही तो खिलाई है माँ।

बचपन के व दिन जब तु ,
हमसे क्रोधित हो जाती थी माँ,
मुख से मौन रहकर,
आँखों के इशारे से ही डराती थी माँ।

तकलीफों में भी मुस्कुराना,
क्रोध आने पर मौन हो जाना,
मुश्किलों में न घबराना,
ये सारी बातें तूने ही सिखाई है माँ ।

अतुलनीय है प्रेम तेरा,
अब ये समझ आई है माँ,
मेरी जीवन की पहली शिक्षिका
तु ही तो कहलाई है माँ।

गौरी तिवारी
भागलपुर बिहार

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 169 Views
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