मेरी खुशनसीबी
चाहत नहीं अब किसी से सिर्फ अपनी तन्हाइयों के साथ रहता हूं
छोड़ चुका हूं अब सब, अब सिर्फ एक कोने में ही रहता हूं
मनुष्य आता है तो खुशियां देता है ,
और जाता है दुख दे जाता है….
मगर मैं वह खुशनसीब हूं…
जिसके दोनों वक्तो से,
खुशी मिली भी है और मिलेगी भी…
और मुझे क्या चाहिए चाहने वालों तुमसे,
मुझे कनागत भी तुमने जीते जी खिला दिया है …
यह मेरी खुशनसीबी ही है,
जो लोगों को मरने के बाद मिलती है ,
मुझे वह जीते जी मिल रही है
उमेंद्र कुमार