” मेरी कविता “
डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
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हमने भी सोचा
एक अनोखी कविता
को लिख डालूं !
साहित्य के तमाम
रसों को मिलकर
कोई नयी रचना
बना डालूं !!
हम अद्भुत
शब्दों के जालों
में फँसना चाहते हैं !
लोगों को भी विचित्र
ओर क्लिष्ट शब्दों
का दर्शन कराना
चाहते हैं !!
कई बार तो
हमने शब्दों पर
अधिक जोर दिया !
रस और भावनाओं
को दूर कहीं
छोड़ दिया !!
हमने भी कई बार
” विनय पत्रिका ”
की तरह लिखना चाहा !
लोगों को सीधी
भाषा में ” रामचरित
रामायण ”
पढ़ते पाया !!
तभी से बात मेरे
मन में सीधी
छा गयी !
हमें अपनी बात
लोगों को कहनी
आ गयी !!
सहज भंगिमा
यदि सबको
स्वीकार है !
तो लखनऊ के
भूल -भूलिया में
घूमना बेकार है !!
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डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका